दिल्ली के दरबार से लेकर राशन आये हम
कुछ तुम हवा खा लो कुछ पानी पी ले हम
कुछ तुम हवा खा लो कुछ पानी पी ले हम
काबा-ओ-काशी के झगड़े में मसरूफ रहनुमा
राम-ओ-खुदा साथ लिए चौराहे पर बैठे हम
पत्थर उबालती रही शब भर चुल्हे में माँ
बच्चे पुछते रहे खायें या पी जायें इसे हम
बच्चे पुछते रहे खायें या पी जायें इसे हम
जीने का हक तो खो भी चुके तेरे राज में
मरने के लिए इंतजाम-ए-जहर कैसे करे हम
तुम्हारी रहनुमाई में जिस्म भी बिक गई
चंद साँसों के लिए और क्या क्या बेचे हम
चंद साँसों के लिए और क्या क्या बेचे हम
नहीं कोई उम्मीद बस एक एहसान करो
चुल्लूभर पानी अता करो के डूब मरे हम
चुल्लूभर पानी अता करो के डूब मरे हम
गरीब मिटाते हैं --
जवाब देंहटाएंनई गरीबी रेख से, कर गरीब-उत्थान ||
दो सरदारों से बना, भारत देश महान ||
अरे भाई इतना भी गम नही है जमाने में हिंदुस्तान की दुखी जनता को ललकारो कविता मे रणभेरी बजनी चाहिये
जवाब देंहटाएंजिंदगी की राह नहीं इतनी आसान नहीं है ,गरीब आदमी तो मर भी नहीं सकता,,,,,,उस बेचारे को तो भगवन मरने की भी तकदीर नहीं देता,,,,कोई कोई jayada खाने से मर जाता है,और कोई कोई ८ दिन भूखा रहने के बाद भी नहीं मरता......बस यही हो रहा है अब की अमीर, और अमीर हो रहा है गरीब, और गरीब.......सच में बहुत जल्दी ही सबका ज्वालामुखी भूटने वाला है.........
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