रविवार, अक्तूबर 30, 2011

इज़्तिरार

एक उँगली उठ तो जाती है गैर के गिरेबाँ पर
बाकी चार के इशारे को भी क्या कभी देखा है

उसके दामन में कालिख तो पोत दी लेकिन
अपने स्याह हाथों को भी क्या कभी देखा है

खूब करते हो लानत मलामत अमीरों की
अपनी जेब झाँक कर भी क्या कभी देखा है

जमीं पे आ जाते हैं आसानी से टूटकर आँसू
किसी आँखो में सूखे हुए भी क्या कभी देखा है

तमाम उम्र ढूँढा किया काशी-ओ-काबा में उसे
किसी मासूम के आँखो में भी क्या कभी देखा है

बुधवार, अक्तूबर 26, 2011

दीपोत्सव पर मंगलकामना

तेल बाती का दिया
बहुत जला लिया
मिटता नहीं तम
फैला जो जीवन में
अब के बरस
दीपोत्सव पर
खुद चिराग बन कर
ऐसी रोशनी करें
किसी झोपड़ी पर खड़े
अधरों पर मुस्कान बिखेंरे
एक एक दीप जुड़कर
आदित्य सा प्रकाश करें
मन का अंध तमस मिटे
अंत:करण में एक दिया जलायें
आयें अब की दीपावली
कुछ नये ढंग से मनायें
पूरी दुनिया हो प्रकाशित
माँ वैभव लक्ष्मी सभी द्वार पर
आकर कृपा बरसाये
विश्व को शांति
राष्ट्र को उन्नति
समाज को समृध्दि
परिवार को स्नेह
व्यक्ति को वैभव
प्राप्त हो .....
यही कामना प्रकाश पर्व पर ...... जय हो !!

शनिवार, अक्तूबर 22, 2011

मैं और मेरी मोबाईल

मैं और मेरी मोबाईल
अक्सर ये बातें करते हैं
जब मैं उसे अपने दिल के करीब
अपने शर्ट के जेब पर रखता हूँ
वो बड़े प्यार से वाईब्रेट होकर
साइलेंट मोड में इशारों से कहती है
काश वो ड्यूल सिम वाली होती
और उसमें भी ब्लैकबैरी सुविधा होती
मल्टीमिडिया फँक्शन के सहारे
हसीनाओं की हाई डेफिनेशन विडियो लेती
एक साथ दो दो मेनकाओं से आल्टरनेट निपटती
मिटिंग रूम में भी बिजी मोड में रहकर
फेसबुक पर चौथी से दिल के तार जोड़ती
शर्ट की जेब पर शर्म से मुँह ना छुपा कर
खुले आम हाथों में बल खाती इठलाती


मगर ये हो ना सका
मगर ये हो ना सका , अब तो ये आलम है
निजीपत्नी ने अपना पोस्ट पेड सिम
नोकिया 1100 माडल के सेट पर
लगा कर मुझे दे दिया है
और हर माह काल डिटेल मिला कर
सीबीआई की तरह इंक्वारी करती है ......

बुधवार, अक्तूबर 19, 2011

चरण पादुका की अभिलाषा


चाह नहीं मैं निरमा बाबा के
चरणों में पहना जाऊँ 

चाह नहीं, सेक्सी मल्लिका के
चरण चिपक युवको को ललचाऊँ 

चाह नहीं, मधु सप्रे पर  
अगजर के संग डाला जाऊँ 

चाह नहीं, सचिन के किट बैग पर
कांधे चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ 

चाह नहीं अम्मा का बनकर  
खुद चलूँ और पूजा जाऊँ  

मुझे निकाल कर सब जनता
उनके मुख पर मिलकर ठोकें   

मातृभूमि का शीश काटने
भूषण , बुकरी जो भी भौंके ।।

शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2011

बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है...

ये अनशन , ये सिविल सोसायटी की दुनियाँ
ये निजहित के जनहित याचिकाओं की दुनियाँ
ये विदेशों के रंगीन डालर की दुनियाँ
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है 

हर एक जिस्म फर्जी , हर एक जेब प्यासी
निगाहों से शातिर , दिलों में मक्कारी
बिना इनके कैसे हो अपनी ऐय्याशी
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है 

भारत खिलौना है,आजादी कचरा
हर आदमीं यहाँ पर बलि का है बकरा
ना हो जीवन से गर मौत भी सस्ती
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है 

नेता भटकते हैं वोटों का चक्कर
जवाँ जिस्म सजते हैं टी वी पर अक्सर
यहाँ मीडिया बिकता है व्यापार बनकर
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है 

ये दुनियाँ जहाँ बाबा भी करते खेती
अगर गन्ना ना हो तो शक्कर ना होती
बस कुछ दिन किसी को भूखे रखवाओ  
फिर मीडीया के जरिये खेला दिखाओ
और सत्ता नशीनों की बत्ती बुझाओ
हमेशा के लिए खुद ही मसीहा हो जाओ
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है 

जला दो मोमबत्ती, फूंक डालो ये बस्ती
मेरे मामले में लगा दो मोर्चा औ तख्ती
कहाँ हो ऐ बुकरी कहाँ हो ऐ तीस्ता
कहाँ हो ऐ मानवाधिकारी फरिश्ता
जरा तुम  भी आओ  मेरे लिए भी गाओ
मिलता है डॉलर तो चीखो चिल्लाओ
पड़े चाहें जूते या लात खायें
अगर काश्मीर पर ना कोई राग गायें
विदेशों से चंदे भला कैसे पायें
अगर तुमने ना छिना अधिकार मानवों का
तो किस बात के तुम हो मानवाधिकारी
कहीं बंद ना हो जाय अपनी दुकानदारी
बिना डालरों के बिना एवार्ड और चंदे 
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है



बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है..............

शनिवार, अक्तूबर 08, 2011

रावण उपदेश

रावण लीला की शब्दरचना के बाद
कल रात लंकापति स्वप्न में आये
अट्टाहस की जगह मंद मंद मुकुराये

बदला हुआ स्टाईल देखकर
हमारा चित्त भरमा गया
बोला कपिलमुनि इतना कष्ट कीजै
मेरी मूढ़मति की लघुशंका समाधान कीजै
इटली का नाश्ता कर चुके हों तो बोलें
हे मनमोहन यथाशीघ्र मौन व्रत खोलें
मंदोदरीपति ने अपना सुरक्षा आवरण हटाया
और हमें अपने दस मुख“र”जी का दर्शन कराया
बोले हे संजय तुम तटस्थ भाव रखते हो
सदैव मेरी उँगली करने में लगे रहते हो
इस कलयुग में सबकुछ मायावी है 
सारी दुनिया ही शूर्पनखा का भाई है
तुम्हारे दूरदर्शन ने जो धोती और टोपी दिखाई है
दरअसल हर किसी ने उसे मुझसे ही चुराई है
मैं मानता हूँ मेरा अमृत कुँड स्विस नाभि में जमा रखा है
और जन लोकपाल से शायद मेघनाथ वध लिखा है
अब आरटीआई से भला कौन सा बाली मर गया
लेकिन हाथ का आशीर्वाद उल्टा काम कर गया 
भस्मासुर वरदान पाकर उसी के पीछे लग गया 
सारी इंद्रनगरी अब उसी भस्मासुर से निपटने में लगी है
और मेरा वध करने की किसी को फुर्सत ही कहाँ पड़ी है
लेकिन तुझे राज की बात बता रहा हूँ
अपने ही मौत का सामान सौंप रहा हूँ
मेरी नाभि का अमृत कुँड कोई सरदार नहीं खोज पायेगा 
खुद के भीतर झाँको तुम सबमें एक रावण मिल जायेगा ...  जय हो !

शुक्रवार, अक्तूबर 07, 2011

रावण लीला

लाख प्रयत्न के बाद भी
कलियुगी रामू के अग्निबाण से
रावण जब नहीं जला तो
रामू ने विभीषण से पूछा
अबे ये मरेगा कैसे
विभीषण बोला हे देव
इसका अमृत कुंड तो
स्विस नाभि में जमा है
वहीं बाण चलाओ
, तभी मरेगा
रामू बोला अबे पगला गया है का
वहाँ बाण मारूँगा तो गड़बड़ हो जायेगी
लंका के साथ साथ
माता की अशोक वाटिका भी
भस्म हो जायेगी
और यदि सचमुच रावण मर भी जायेगा
तो मेरी जगह बाबा राम देव कब्जा जमायेगा
और वही पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या जायेगा
बात यहीं समाप्त हो जाती तो मान भी जाता
अपनी पगड़ी उतार कर झंझट से मुक्ति पाता
लेकिन राजगद्दी में धर्मसंकट पैदा हो जायेगा
रालेगाँव के भरत के गद्दी छोड़ने के लिए
क्या शत्रुघन की टीम मान जायेगा
रे विभीषण कुछ नया आईडिया है तो समझा
नहीं तो कुछ दिनो के लिए अज्ञातवास चला जा
अपनी एडवाईजर की पोस्ट जाता देख
विभीषण घबराया
मानस पटल पर गंभीरता लाया
फिर बोझिल मन से फरमाया
हे देव, दम है तो एक काम कीजिए
अपनी प्रक्षेपण दिशा विपरीत कीजीए
ंचस्थ रावणों का सर्वनाश कीजीए
मानता हूँ इससे आपका भी नाश हो जायेगा
लेकिन यकीन मानिए
आपका नाम शहीदों में गिना जायेगा ...  जय हो