ये अनशन , ये सिविल सोसायटी की दुनियाँ
ये निजहित के जनहित याचिकाओं की दुनियाँ
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
हर एक जिस्म फर्जी , हर एक जेब प्यासी
निगाहों से शातिर , दिलों में मक्कारी
बिना इनके कैसे हो अपनी ऐय्याशी
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
भारत खिलौना है,आजादी कचरा
हर आदमीं यहाँ पर बलि का है बकरा
ना हो जीवन से गर मौत भी सस्ती
ना हो जीवन से गर मौत भी सस्ती
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
नेता भटकते हैं वोटों का चक्कर
जवाँ जिस्म सजते हैं टी वी पर अक्सर
यहाँ मीडिया बिकता है व्यापार बनकर
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
ये दुनियाँ जहाँ बाबा भी करते खेती
अगर गन्ना ना हो तो शक्कर ना होती
अगर गन्ना ना हो तो शक्कर ना होती
बस कुछ दिन किसी को भूखे रखवाओ
फिर मीडीया के जरिये खेला दिखाओ
और सत्ता नशीनों की बत्ती बुझाओ
फिर मीडीया के जरिये खेला दिखाओ
और सत्ता नशीनों की बत्ती बुझाओ
हमेशा के लिए खुद ही मसीहा हो जाओ
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
जला दो मोमबत्ती, फूंक डालो ये बस्ती
मेरे मामले में लगा दो मोर्चा औ तख्ती
कहाँ हो ऐ बुकरी कहाँ हो ऐ तीस्ता
कहाँ हो ऐ मानवाधिकारी फरिश्ता
जरा तुम भी आओ मेरे लिए भी गाओ
जरा तुम भी आओ मेरे लिए भी गाओ
मिलता है डॉलर तो चीखो चिल्लाओ
पड़े चाहें जूते या लात खायें
अगर काश्मीर पर ना कोई राग गायें
विदेशों से चंदे भला कैसे पायें
अगर तुमने ना छिना अधिकार मानवों का
तो किस बात के तुम हो मानवाधिकारी
अगर तुमने ना छिना अधिकार मानवों का
तो किस बात के तुम हो मानवाधिकारी
कहीं बंद ना हो जाय अपनी दुकानदारी
बिना डालरों के बिना एवार्ड और चंदे
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है
बिना इनके दुनियाँ मिल भी जाए तो क्या है..............
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या हो
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/
बुद्धिजीवी का बड़ा, रोचक है अन्दाज |
जिभ्या ही करती रहे, राज काज आवाज ||
ghun laga gaya dane dane, sichti hoon diwali ki safayi ker di jaye,
जवाब देंहटाएंlekin derti hoon ki kahin sara ghar hi na saaf ho jaye !!
गुलाल वाले ने देखा तो रोयल्टी मांग लेगा आपसे , ...../. वैसे , (सुपर लाईक का हिंदी जो भी हो )
जवाब देंहटाएंआप का लेखन अतिउत्तम है और परिस्थितियों पर कटाक्ष शानदार........
जवाब देंहटाएं