गुरुवार, मई 01, 2014

वादा


गाँव के आखिरी मोड़ पर
सबसे पुराना वाशिन्दा
वो बूढ़ा पीपल का पेड़
जिस पर हमने साथ-साथ
उसके सख्त हेयर क्लिप से
खुरचते हुए कई इबारतें लिखीं थी


उसी पीपल के खुरदरे बदन पर
कुछ मिटाने की जद्दोजहद में
अपने नाखूनों से कुरेदते हुए
यकबयक उसने
पिछली सारी कसमें तोड़ते हुए
एक नई कसम खाई
और फिर जाते जाते कहा
कसम है, जो तुम्हे याद करूँ
तुम भी ये वादा करो
हमारा जिक्र कभी ना करोगे
और भूल जाओगे मुझे


मैं अपने सारे दर्द-ओ-गम भूलकर
फौरन मान भी गया
न मानता तो और क्या करता  
उसकी हर बात निभाने का
वादा जो कर रखा था
और उसी वादे को निभाने के लिए
रोज सोचता हूँ भूल जाऊँ उसे
रोज ये बात भूल जाता हूँ

मंगलवार, अप्रैल 01, 2014

चुनाव है क्या

नफरतें कौमों के बीच यकबयक बढ़ गई  
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

अमीर बैचैन हैं गरीबों के फिक्र से 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

गिरगिट रंग बदलते हुए शरमाने लगे 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

भरी दुपहरी पाले बदल रहे सफेदपोश
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

नेताजी ने तन्हा हुश्न को बहनजी कहा 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

पाँच साल से खोये हजरत हाथ जोड़े दिखे
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?  

मैखाने सूने हैं, पर बस्ती है मदहोश 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ? 

जेबें खाली पर झोलों में भरी हुई बोतल
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ? 

अपने शे'र में एक ही जुमला बार बार कहे 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ? 

सेहन-ए-मस्जिद में "काफिर" बहका बहका है 
यार जरा पता तो करो चुनाव है क्या ?