मंगलवार, अगस्त 30, 2011

दर्द-ए-दिल-ए-स्वामी अग्निवेश


इक रहिन किरण
इक रहिन मनीष
इक रहिन केजरीवाल
इक रहिन प्रशांत
और इक रहिन  हम
 
किरण कही चलो अन्ना बन जाई
मनीष कही चलो अन्ना बन जाई
केजरी कही चलो अन्ना बन जाई
प्रशांत कही चलो अन्ना बन जाई
हम कही चलो हमऊ अन्ना बन जाई

तो किरण बनी लेफ्ट अन्ना
मनीष बनी राईट अन्ना
केजरी बनी फ्रंट अन्ना
प्रशांत बनी बेक अन्ना
और हम बनी ............


साला जगह ही नाहीं बची तो का बनते............


मजबूरी में बन गवा  स्वामी अग्निवेश  !! जय हो !!

सोमवार, अगस्त 29, 2011

याद-ए-माँजी

याद आतें है मुझे

बीत गये जो लम्हे

वो तेरी उँगलियाँ
जो होंठों से तरबतर होकर
कभी किताबों के सफहे
पलटा करतीं थी 
और मेरा, चेहरे को तेरे
कोई चकोर सा तकते रहना
किसी बहाने माँग कर वो किताब तेरा
अपने होठों से वही मखमली सफहा छूना
तह-ब-तह खुद ही खुला जाता था
पर्द-ए-शर्म तेरा मुझसे 
मिट गये कब पता ना चला
फासले जो दरमियाँ थे अपने 
अब ना वो आलम है
ना वो रश्म-ओ-रिवाज
तेरा चेहरा और वो तेरी गुलाबी किताब
दोनो एक दूसरे में यूँ जज्ब हुए
बेतार जाल के इस दौर-ए-जहाँ में
फेसबुक के नाम से मशहूर हुए
उँगलियाँ बेजान से चूहे पर बस 
अब फकत क्लिकही किया करतीं हैं .........

रविवार, अगस्त 28, 2011

== अन्न सन्न ==

संजय उवाच...........
गोल भवन में बे "चारा" भालू
आदतन बेवजह गरियाया .....
मुन्ना के बारह दिन अनशन के बाद
तीन किलोमीटर दौड़ने के दावे का
राज समझ नहीं आया .....
देश के बड़े हकीमों से
देश हित में इसका रिसर्च करवाओ ....
हम जैसे पेटू नेताओं को
इसका रहस्य समझाओ .....
जैसे ही ये खबर आईपेड के जरिये
रामलीला मैदान में आया .....
चौहत्तर साल का जवान मुन्ना
उसी के स्टाईल में फरमाया .......
अरे जिंदगी भर पशुचारा खाओगे
उस पर लगातार बारह बछड़े जनाओगे
रबड़ी नहीं जो आसानी से चट कर जाओगे
ये ब्रम्हचारी का अनशन है प्यारे
बारह दिन तो क्या
बारह घंटे मे ही
राम नाम सत्य हो जाओगे ... !! जय हो !!

शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

== लोकल जनलोकपाल बिल ==

अन्ना के आमरण अनशन के स्टाईल ह मोला भा गे
मोर दिमाग में घला एक नानकुन आईडिया ह आ गे
सोचत हूँ मोर बाई के खिलाफ मैं घला आमरण अनशन में बैठ जाहूँ
रात के जब बाई सुत जाही तो छीप छीप के पेट भर भात खाहूँ
वैसन भी मोर तो रोज के अनशन हो जा थे
सुबह ले चढ़ा ले थों तो बिना खाये भी चल जा थे
अब असल बात के तो सीरा गैहों
अनशन के कारण बताय बर भुला गैहों
मैं चाहत हों घर में भी एक लोकल लोकपाल बिल बनाहूँ
जोन मोर जेब ला साफ करथे वो ला एकर दायरा में लाहूँ
जैसन ये बात मोर चिदम्बरम ला पता चलीस
का बताऊँ दाऊ कैसन माथा पीरा गे
एकदम फनफना के दिल्ली पुलिस के रोल में आ गे
मैं चिल्लात रहूँ मोर बाई, मैं बाबा नहीं मैं हों अन्ना
लेकिन वो नई मानीस धर दिस मोर मुँडी में गन्ना पे गन्ना

सोमवार, अगस्त 08, 2011

अमीरो की गरीबी ...

शाम  का  वक्त
दस शयनकक्ष वाले छोटे से घर के
तीसरी मंजिल की बालकनी में
सावन की झड़ी के आँचल में बैठा
गरमा गरम पकौड़ों को
उपकृत करता हुआ
फेसबुक पर ज्ञान चर्चा ......
सामने नुक्कड पर चाय के ठेले पर
भीगता हुआ नन्हा बालक
बर्तन साफ करता हुआ ......
बड़े से मकान की दीवार के साये में
प्लास्टिक की चादर के तले
भीगे चुल्हे पर
भोजन सा कुछ बनाती
एक आकृति
शायद कोई  महिला हो .......
सडक के किनारे
एक बंद व्यवसायिक प्रतिष्ठान के गलियारे में
अपने अस्तित्व को सिकोड़ता हुआ
जर्जर काया को विश्रामित करने का
असफल प्रयास करता हुआ वृध्द .........
नजरें इन पर पड़ीं
साम्यवादी मन मचल उठा
देश में गरीबों की दुर्दशा पर
चिंतन फिर लेखन हेतु 
कलम उठाया
उनकी दुर्दशा को
अपने बुध्दजीवी चिंतन में परिवर्तित कर
धवल पत्रों पर कुछ सलीके से ही सही
पर कालिख पोत दी ............
यकीनन
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होना ही है
हुआ भी ऐसा ही
अंतराष्ट्रीय पुरस्कार हेतु नामांकित
मेरा चिंतन
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर
पंजीकृत “महापात्र” बना ........
घर की ओर लौटते वक्त
सामने फिर वही बालक चौराहे पर
कोल्हु पर बैल की तरह कर्तव्यरत 
सोचा चलो एक क्षण मिल कर
अपना नैतिक दायित्व निभा आऊँ
उसके योगदान से उऋण हो जाऊँ
अपनी वातानुकुलित गाड़ी से उतरकर
ठीक पीछे से उसके कंधे पर
ज्यों ही अपना हाथ रखा
बालक चौंक कर तेजी से पलटा 
हाथ में धोने के लिए पकड़े हुए
एक झूठे गिलास से पानी की बौछार
सीधे मेरे चेहरे पर पड़ी
नींद टूटी ............
देखा छत से पानी टपक कर
चेहरे पर स्थापित हो रहा है ............
मन हमेशा विचलित इस यक्ष प्रश्न से 
जेठ की तपती दोपहरी में
कोई शरद पर गीत कैसे लिख पाता है
नींद में ही सही पर पता तो चला .....
कलम का सिपाही
16 डिग्री तापमान वाले
वातानुकूलित कक्ष में
बुध्दत्व को प्राप्त
कर्तव्यरत है .........
सिर्फ नींद ही टूटती तो कोई गम ना था
किंतु कुछ सपने टूटे,
कुछ भ्रम टूटे,
कुछ मान्यतायें टूटीं
कुछ असलियत बेनकाब हुए ......
सोचता हूँ कितना हसीन है
मेरे देश में
गरीबी का फलसफा कहना ......
!! जय हो !!
=== संजय महापात्र ===