नयनो को तो वही दृष्य था
जो सारे जग ने देखी थी
सबके अधर से वाणी फूटी
किंतु मेरे चक्षु क्यूँ बरस पड़े
सबकी वाणी स्वर गुंजन है
मेरे स्वर क्यूँ अविरल बहते
शायद मेरी रीत अलग है
मैं अंतर्मन से दर्शन करता
नयनों से उच्चारण करता
मुझको प्रतिक्षा तेरी मधुसुदन
नयनों की वाणी यदि समझो
फिर सूरदास बन इठलाऊँ
गीत वही पुरानी गाऊँ
हाथ छुड़ाये जात हो
निर्बल जान के मोय
ह्रदय से जब जाओ तो
सबल मैं जानू तोय ,,,,,,, जय हो
जो सारे जग ने देखी थी
सबके अधर से वाणी फूटी
किंतु मेरे चक्षु क्यूँ बरस पड़े
सबकी वाणी स्वर गुंजन है
मेरे स्वर क्यूँ अविरल बहते
शायद मेरी रीत अलग है
मैं अंतर्मन से दर्शन करता
नयनों से उच्चारण करता
मुझको प्रतिक्षा तेरी मधुसुदन
नयनों की वाणी यदि समझो
फिर सूरदास बन इठलाऊँ
गीत वही पुरानी गाऊँ
हाथ छुड़ाये जात हो
निर्बल जान के मोय
ह्रदय से जब जाओ तो
सबल मैं जानू तोय ,,,,,,, जय हो
मुझको प्रतिक्षा तेरी मधुसुदन
जवाब देंहटाएंनयनों की वाणी यदि समझो
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको बहुत बहुत बधाई |
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना भी देखें |
मेरी कविता:राष्ट्रभाषा हिंदी
अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी रसना को पद्कर बहुत आनंद आया!
जय हो