सोमवार, सितंबर 12, 2011

नयन वाणी

नयनो को तो वही दृष्य था 
जो सारे जग ने देखी थी
सबके अधर से वाणी फूटी 
किंतु मेरे चक्षु क्यूँ बरस पड़े
सबकी वाणी स्वर गुंजन है
मेरे स्वर क्यूँ अविरल बहते
शायद मेरी रीत अलग है
मैं अंतर्मन से दर्शन करता
नयनों से उच्चारण करता 
मुझको प्रतिक्षा तेरी मधुसुदन
नयनों की वाणी यदि समझो
फिर सूरदास बन इठलाऊँ
गीत वही पुरानी गाऊँ
हाथ छुड़ाये जात हो
निर्बल जान के मोय
ह्रदय से जब जाओ तो
सबल मैं जानू तोय ,,,,,,,  जय हो

4 टिप्‍पणियां:

  1. मुझको प्रतिक्षा तेरी मधुसुदन
    नयनों की वाणी यदि समझो

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
    आपको बहुत बहुत बधाई |

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  2. बहुत खूब 
    आपकी रसना को पद्कर बहुत आनंद आया!

    जय हो

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