पथिक ,
आ चलें प्रगति पथ पर
मुक्त हों कृष्ण जाल से
प्राप्त हों प्रज्ञा प्रकाश को
आ चलें प्रगति पथ पर .............
कंटक बंधन के बिखरे यत्र तत्र
छाया घनघोर तिमिर सर्वत्र
सूझते नहीं जब हाथों को हाथ
प्रज्ञा ज्योति प्रज्वलित कर
आ चलें प्रगति पथ पर .............
धवल पत्रों में जो कृष्ण तार हैं
इन्ही में छिपा जीवन सार है
ज्ञान सरोवर के इस भंडार से
अक्षर मोती कुछ समेटकर
आ चलें प्रगति पथ पर .............
ज्ञान गंगा अविरल बह रही
हस्त मुक्त नहीं पर कुंठित मन से
भूल उम्र के व्यर्थ जाल को
पवित्र जल का आचमन कर
आ चलें प्रगति पथ पर .............
ज्ञान उन्नति का मार्ग जान ले
अज्ञानता भटकायेगी जान ले
बात संजय की तू मान ले
अवसर फिर न आयेगी द्वार पर
आ चलें प्रगति पथ पर .............
आ चलें प्रगति पथ पर .........
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.....
सुंदर....उच्चस्तरीय हिंदी का सुंदर प्रस्तुतीकरण ...
जवाब देंहटाएंज्ञान गंगा अविरल बह रही
जवाब देंहटाएंभूल उम्र के व्यर्थ जाल को
बात संजय की तू मान ले
आ चलें प्रगति पथ पर .............
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