बुधवार, जनवरी 25, 2012

मेरा गाँव क्यूँ शहर हो रहा है

रहनुमा कह रहें है विकास हो रहा है
आदमी आदमी का भरोसा खो रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है   

गाँव के कुएँ अंधे होने लगे हैं
हर घर में ट्यूबवेल खुद रहा है 
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

तालाब को पाट कर कह रहे हैं
यहाँ स्वीमिंग पुल बन रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

सैकड़ो एकड़ खेतों की बलि चढ़ाकर
सुना है हाथी पार्क बन रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

जहाँ हमने खेला था गुल्ली औ डंडा 
वहाँ अब हेलीपेड बन रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

वो पगडंडियों पर बारिश की कश्ती
कुछ रोज से नाली खुद रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

बाबा के काँधे पर स्कूल क्योँ जायें
बच्चों के लिए अब बस चल रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

छुट्टी की घंटी पर उछलने के बदले 
ट्यूशन के लिए बस्ता ढो रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

वो स्कूल का आँगन जहाँ भीगते थे
काँक्रीट के खम्बों पर छत ढल रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है  

गायब है मंदिर से कीर्तन की मण्डली
कोई बाबा लोगों पे किरपा कर रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

नुक्कड़ पे पनवाड़ी डब्बे से गायब
अब हर शख्स नेट पर चैट रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

हुई गुम भोलाचाचा के आलू की भजिया 
वहाँ पेस्ट्री पीजा और बर्गर बिक रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

बागों के झूले पर चाची ना बुआ
टीवी की स्क्रीन पे रिश्ता बन रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

अब गोरी की नजरें झुकती नहीं है
सीधे मोबाईल से मेसेज हो रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

वो बैलगाड़ी में बाजार जाना 
कहते है अब आटो चल रहा है
मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

मकानो की दूरी तो कम हो गई है
दिलों का फासला पर बढ़ ही रहा है

मेरा गाँव अब शहर हो रहा है 

ना चाचा ना ताऊ ना फूफा ना जीजा
हर एक शख्स गणमान्य हो रहा है

मेरा गाँव अब शहर हो रहा है  

मुझे कोई शिकवा शिकायत नहीं हैं
पर कैसे मैं बोलूँ ये क्या खो रहा है
मेरा गाँव क्यूँ शहर हो रहा है
मेरा गाँव क्यूँ शहर हो रहा है....................

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