सोमवार, अगस्त 08, 2011

अमीरो की गरीबी ...

शाम  का  वक्त
दस शयनकक्ष वाले छोटे से घर के
तीसरी मंजिल की बालकनी में
सावन की झड़ी के आँचल में बैठा
गरमा गरम पकौड़ों को
उपकृत करता हुआ
फेसबुक पर ज्ञान चर्चा ......
सामने नुक्कड पर चाय के ठेले पर
भीगता हुआ नन्हा बालक
बर्तन साफ करता हुआ ......
बड़े से मकान की दीवार के साये में
प्लास्टिक की चादर के तले
भीगे चुल्हे पर
भोजन सा कुछ बनाती
एक आकृति
शायद कोई  महिला हो .......
सडक के किनारे
एक बंद व्यवसायिक प्रतिष्ठान के गलियारे में
अपने अस्तित्व को सिकोड़ता हुआ
जर्जर काया को विश्रामित करने का
असफल प्रयास करता हुआ वृध्द .........
नजरें इन पर पड़ीं
साम्यवादी मन मचल उठा
देश में गरीबों की दुर्दशा पर
चिंतन फिर लेखन हेतु 
कलम उठाया
उनकी दुर्दशा को
अपने बुध्दजीवी चिंतन में परिवर्तित कर
धवल पत्रों पर कुछ सलीके से ही सही
पर कालिख पोत दी ............
यकीनन
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होना ही है
हुआ भी ऐसा ही
अंतराष्ट्रीय पुरस्कार हेतु नामांकित
मेरा चिंतन
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर
पंजीकृत “महापात्र” बना ........
घर की ओर लौटते वक्त
सामने फिर वही बालक चौराहे पर
कोल्हु पर बैल की तरह कर्तव्यरत 
सोचा चलो एक क्षण मिल कर
अपना नैतिक दायित्व निभा आऊँ
उसके योगदान से उऋण हो जाऊँ
अपनी वातानुकुलित गाड़ी से उतरकर
ठीक पीछे से उसके कंधे पर
ज्यों ही अपना हाथ रखा
बालक चौंक कर तेजी से पलटा 
हाथ में धोने के लिए पकड़े हुए
एक झूठे गिलास से पानी की बौछार
सीधे मेरे चेहरे पर पड़ी
नींद टूटी ............
देखा छत से पानी टपक कर
चेहरे पर स्थापित हो रहा है ............
मन हमेशा विचलित इस यक्ष प्रश्न से 
जेठ की तपती दोपहरी में
कोई शरद पर गीत कैसे लिख पाता है
नींद में ही सही पर पता तो चला .....
कलम का सिपाही
16 डिग्री तापमान वाले
वातानुकूलित कक्ष में
बुध्दत्व को प्राप्त
कर्तव्यरत है .........
सिर्फ नींद ही टूटती तो कोई गम ना था
किंतु कुछ सपने टूटे,
कुछ भ्रम टूटे,
कुछ मान्यतायें टूटीं
कुछ असलियत बेनकाब हुए ......
सोचता हूँ कितना हसीन है
मेरे देश में
गरीबी का फलसफा कहना ......
!! जय हो !!
=== संजय महापात्र ===

2 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक व ह्रदय स्पर्शी, गरीबी के दंस की वास्तविक अनुभूति साथ ही अर्थवादी मानसिकता पर गहरा प्रहार । वाह गुरूजी बेहतरीन

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  2. हृदयस्पर्शी, सुन्दर ! महापात्रा जी !

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