रहनुमा चाटुकार, ऐसा क्यूँ होता है !
कातिल पहरेदार, ऐसा क्यूँ होता है !
हर शख्स अपने ही साये से खौफजदा
मुल्क का ये हाल, ऐसा क्यूँ होता है !
घोड़ो को खाने के लाले पड़े हुए हैं ,
गधे मलाईदार, ऐसा क्यूँ होता है !
गोडसे के कृत्य का तरफदार नहीं हूँ ,
कसाब शाहीखर्च पर, ऐसा क्यूँ होता है !
आसमां सुर्ख हुआ तो बना साम्प्रदयिक,
धर्मनिरपेक्ष हरियाली, ऐसा क्यूँ होता है !
तन्हा चल पढ़ा हूँ अपनी डगर “काफिर”
उस पर भी तँजदारी, ऐसा क्यूँ होता है !
कातिल पहरेदार, ऐसा क्यूँ होता है !
हर शख्स अपने ही साये से खौफजदा
मुल्क का ये हाल, ऐसा क्यूँ होता है !
घोड़ो को खाने के लाले पड़े हुए हैं ,
गधे मलाईदार, ऐसा क्यूँ होता है !
गोडसे के कृत्य का तरफदार नहीं हूँ ,
कसाब शाहीखर्च पर, ऐसा क्यूँ होता है !
आसमां सुर्ख हुआ तो बना साम्प्रदयिक,
धर्मनिरपेक्ष हरियाली, ऐसा क्यूँ होता है !
तन्हा चल पढ़ा हूँ अपनी डगर “काफिर”
उस पर भी तँजदारी, ऐसा क्यूँ होता है !
घोड़ो को खाने के लाले पड़े हुए हैं ,
जवाब देंहटाएंगधे मलाईदार, ऐसा ही होता है