बुधवार, जुलाई 13, 2011

पिग्विजय बाण

इस स्तुति के पुर्व भोगी अपना मन कलुषित कर ह्रदय क्लेश, कटुता, वैमंस्यता और नीचता से  परिपूर्ण कर ले !

हे पिग्गीमुखी नर
चिरकुट विदुर श्वान
भद्रजनों के भक्षक
तुम हो असुर समान  

तुम नराधम नरभक्षक
तुम हो अधमपति
तुमसे ही घबराते
नर, पशु और पाषाण  

किससे हुई ये गलती
किसने रचा तुम्हे
यही सोचते हरदम
ईसा, खुदा, श्री राम  

अनजाने में तुमको
डॉग विजय जो कहा
मानहानि का दावा
कर बैठे सब श्वान  

भूत प्रेत सब भागें
लज्जित हो तुमसे
चरण पादुका पड़ते
खाली हुआ श्मशान  

जो नर तुझ जैसा गर
बके सुबह और शाम
यथा शीघ्र वो पायेगा
निशान-ए-पाकिस्तान


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