अपनी माँ का मोल लगायें
चलो देश को बेच के आयें
ऋषि दधिची हडिडयाँ समेटकर
नेताओँ का कवच बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
गाँधीजीं का एक ही सपना
ग्राम स्वराज हो देश मे अपना
सरपंच निवास का मार्ग बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
प्रजातंत्र है अपना धर्म
इसमें निहित सारे कुकर्म
बारह टाँगों की कुर्सी बनायेँ
चलो देश को बेच के आयें ............
सारा देश है जब अपना घर
अपने घर में किसका डर
आओ नंगा नाच करायें
चलो देश को बेच के आयें ............
बुद्ध महावीर के जिस पर साये
माँसाहार वो कैसे कर पाये
पशुचारा को आहार बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
फाँसी चढ़ क्या मिला भगत को
भूखा रहा न मिला रोटी राणा को
खादी पहन सुखी हो जायें
चलो देश को बेच के आयें ............
सुबह शाम क्यों बच्चे भागें
भारी भरकम बोझ उठाये
“टू” व “जी” से भविष्य बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
मालूम होता पिता है कौन
नेता बनता यहाँ पर कौन
गाँधीजी को पिता बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
चलो देश को बेच के आयें
ऋषि दधिची हडिडयाँ समेटकर
नेताओँ का कवच बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
गाँधीजीं का एक ही सपना
ग्राम स्वराज हो देश मे अपना
सरपंच निवास का मार्ग बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
प्रजातंत्र है अपना धर्म
इसमें निहित सारे कुकर्म
बारह टाँगों की कुर्सी बनायेँ
चलो देश को बेच के आयें ............
सारा देश है जब अपना घर
अपने घर में किसका डर
आओ नंगा नाच करायें
चलो देश को बेच के आयें ............
बुद्ध महावीर के जिस पर साये
माँसाहार वो कैसे कर पाये
पशुचारा को आहार बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
फाँसी चढ़ क्या मिला भगत को
भूखा रहा न मिला रोटी राणा को
खादी पहन सुखी हो जायें
चलो देश को बेच के आयें ............
सुबह शाम क्यों बच्चे भागें
भारी भरकम बोझ उठाये
“टू” व “जी” से भविष्य बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
मालूम होता पिता है कौन
नेता बनता यहाँ पर कौन
गाँधीजी को पिता बनायें
चलो देश को बेच के आयें ............
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें