सोलह अगस्त से हजारे अन्ना फिर त्यागेंगे अन्न !
सुनकर “रजिया का कुनबा“ हो गया है सन्न!!
“पिग्गी राजा” हो गये इस भय चिंता में लीन !
पिघल ना जाये मेरे “बाबा अमूल“ की आईसक्रीम!!
आ गई फिर बेवजह मुसीबत की घड़ी !
हो न जाये अब की अपनी खटिया ही खड़ी!!
“कुटिल मुनि” के मानस पटल पर एक ही सवाल!
कैसे बचेगी अब की दफा अपनी मोटी खाल!!
“जनमर्दन” भी अबकी प्रेस से क्या बोलेंगे!
सिर मुँडाते ही जब उनके ओले पड़ेंगे!!
“चिब्बू” बोले “सल्लु” से सुन भाई खुर्शी!
कुछ तो बता कैसे बचेगी अपनी कुर्सी!!
“सल्लु” बोले “पिन्चू” जाने हमें काहे का गम!
आपके तो नाम मे ही लिखा हुआ पी--रम!!
“पिंचू दादा” बड़े सयाने मन ही मन ये ठाना है!
अब कुछ भी हो जाये ये “मोहन“ को ही ढोना है!!
कह दूँगा मैय्या से मुझको अब बस माफ करो !
बुढ़ापे में मुझसे भी थोड़ा सा इंसाफ करो!!
देख कुटिलता के चक्रव्हयू को “मोहन“ का सर चकरायो !
बोला “सोनी” माता से मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो !!
बार बार दोहराता हूँ ये बात समझ नहीं आयो !
ओ सुन मैय्या मोरी मैं कब माखन खायो!!
माता बोली सुन मेरे मोहन सारे अपयश का भार तुझे ही ढोना है !
तुने ही सब माखन खाया सबसे अब ये कहना है!!
परदेशी माँ की पीड़ा को मोहन झेल न पायो !
थक हार कर मोहन बोले हाँ मैय्या मोरी मैने ही माखन खायो !!
अंतर्मन की पीड़ा को मोहन “काफिर” से दियो बताय !
ऐसी अम्मा अब फिर कोई दुश्मन भी ना पाय !!
सुनकर “रजिया का कुनबा“ हो गया है सन्न!!
“पिग्गी राजा” हो गये इस भय चिंता में लीन !
पिघल ना जाये मेरे “बाबा अमूल“ की आईसक्रीम!!
आ गई फिर बेवजह मुसीबत की घड़ी !
हो न जाये अब की अपनी खटिया ही खड़ी!!
“कुटिल मुनि” के मानस पटल पर एक ही सवाल!
कैसे बचेगी अब की दफा अपनी मोटी खाल!!
“जनमर्दन” भी अबकी प्रेस से क्या बोलेंगे!
सिर मुँडाते ही जब उनके ओले पड़ेंगे!!
“चिब्बू” बोले “सल्लु” से सुन भाई खुर्शी!
कुछ तो बता कैसे बचेगी अपनी कुर्सी!!
“सल्लु” बोले “पिन्चू” जाने हमें काहे का गम!
आपके तो नाम मे ही लिखा हुआ पी--रम!!
“पिंचू दादा” बड़े सयाने मन ही मन ये ठाना है!
अब कुछ भी हो जाये ये “मोहन“ को ही ढोना है!!
कह दूँगा मैय्या से मुझको अब बस माफ करो !
बुढ़ापे में मुझसे भी थोड़ा सा इंसाफ करो!!
देख कुटिलता के चक्रव्हयू को “मोहन“ का सर चकरायो !
बोला “सोनी” माता से मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो !!
बार बार दोहराता हूँ ये बात समझ नहीं आयो !
ओ सुन मैय्या मोरी मैं कब माखन खायो!!
माता बोली सुन मेरे मोहन सारे अपयश का भार तुझे ही ढोना है !
तुने ही सब माखन खाया सबसे अब ये कहना है!!
परदेशी माँ की पीड़ा को मोहन झेल न पायो !
थक हार कर मोहन बोले हाँ मैय्या मोरी मैने ही माखन खायो !!
अंतर्मन की पीड़ा को मोहन “काफिर” से दियो बताय !
ऐसी अम्मा अब फिर कोई दुश्मन भी ना पाय !!
By: Sanjay Mahapatra
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जवाब देंहटाएंआज सियासत खेल हो गया, खेल रहे सब लोग
क्या रजिया का कुनबा, क्या जोगी का जोग
अंतर्मन को करे खोखला ये सिस्टम का कीड़ा
शुक्र है कलयुग में मोहन ने समझी माँ की पीड़ा
किसका करें भरोसा, क्या सजनी क्या सैया
दुनिया की ये रीत हो गई, छोड़ो संजू भैया !