मंगलवार, मई 15, 2012

वस्तु विनिमय


सोचो अगर रूपिया ना होता
वस्तु विनिमय ही चलता होता


क्या करते राजा कलमाड़ी  
कैसे लक्ष्मण बाँगड़ू होता

गाँधी तुम कहाँ पर छपते

गाँधीवाद कहाँ फिर होता

कौन से बंडल फिर लहराते
कैसे प्रश्नकाल फिर होता 
 
ना तो संसद सठिया पाती
चोरों का ना फिर जमघट होता

ना बाबा सलवार पहनते
ना अन्ना का अनशन होता 

कैसे निरमल की किरपा बरसती
कैसे दिनाकरण का प्रेयर होता

इतनी बाते क्या क्या बतलाऊँ
खुद ही सोचो क्या क्या ना होता 

पर एक बात जो टीस हैं दिल पर 
सचमुच अगर रूपिया ना होता
सबसे सुखी हम बस्तरिया होते
नक्सलवाद कहाँ फिर होता   ॥ जय हो ॥

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2 टिप्‍पणियां:

  1. न मिलती फिर दारू भैया
    न बियर बार पर जमघट होता

    न बीवी ही भाव तब देती
    न रूपये को खटपट होता

    बिकता ना थैली में पानी
    प्‍यास बुझाता पनघट होता

    न होता नर का व्‍यापार फिर
    न ही रोता मरघट होता

    न रोते हम मंहगाई पर
    राष्‍ट्र भी विकसित ज्‍यों वट होता

    मनोज

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    1. बैंक मैनेजर की मान भी लें
      पर कवि हृदय ऐसा नहीं होता
      बीबी की खटपट भी रहती
      मधुशाला में जमघट भी होता
      वस्तु विनिमय के दौर में भी
      नोट ना होती पर वोट तो होता

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