बहुत कड़वा लिखते
हो तुम
मै कहाँ लिखता हूँ ?
मै कहाँ लिखता हूँ ?
जो देखता हू वही
कहता हूँ
ठीक है, कहते तो हो
मैं कहता भी नहीं
कलम लिख जाती है
तो फिर तुम्हारी
कलम बड़ी रूखी है
आपकी कलम दें लिख
कर देखूँ
जनाब ये भी वैसी
ही लिख रही है
तो फिर तुम्हारी
कलाईयों का दोष है
हाँ ये हो सकता
है
मेरी कलाईयों में
स्वर्ण आभूषण
नहीं
लोहे का कड़ा है
नहीं फिर ये वजह
नहीं
तुम्हारे मेज की
स्थिति
बैठने पर मुख की दिशा
बैठने पर मुख की दिशा
वास्तु सम्मत
नहीं होगी
इसका मुझे ज्ञान
नहीं
हाँ वातानूकूलित
कमरे में
लिखता होता तो
शायद कुछ कहता
दोपहर के धूप में
खुले आसमान के
नीचे
दिशा का भान कहाँ
रहता है
बस जिस दिशा में
सूरज हो
उस ओर पीठ कर
लिखता हूँ
क्या ये वास्तु
विरूध्द है ?
भूख से बिलखते
बच्चे
फटी हुई साड़ी में
अर्ध नग्न माँ
ये फैशन शो तो
नहीं
अगर होता तो
शायद
कुछ तो सौंदर्य
बोध होता
तो फिर शायद लिख
पाता
गोरी की कलाई , बलखाती अंगड़ाई
कृत्रिम सहारों
से उरोजों का उभरना
नितम्भों का
सलीके से मचलना
पर बदकिस्मती से मेरे दोस्त
पर बदकिस्मती से मेरे दोस्त
जिंदगी जगमगाते फैशन
शो का रैम्प नहीं
हथेलियाँ कम कपड़ों
पर तालियों के लिए नहीं
वहशी पंजे नोंचने के लिए उठते है
यहाँ तन ढकना मजबूरी है, आर्ट नहीं
वहशी पंजे नोंचने के लिए उठते है
यहाँ तन ढकना मजबूरी है, आर्ट नहीं
याद रख ये जिंदगी
का कैनवस है
कमबख्त किसी माल्या का कैलेंडर नहीं ॥ जय हो ॥
कमबख्त किसी माल्या का कैलेंडर नहीं ॥ जय हो ॥
लाजवाब और मार्मिक लिखा है गुरू
जवाब देंहटाएंमेरी जिन्दगी में मेरा केनवास ही मेरा है, रंग तो कोई और ही भरता है......
जवाब देंहटाएंजय हो गुरुदेव
लिखने वालो ने क्या क्या नहीं लिखा,,,देखने वालो ने क्या क्या नहीं देखा,,,पर वो कलम और वो नजर किसी के पास नहीं थी जो तुम्हारे पास थी,,,,आदाब को बज्जा के लता हूँ |
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