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बेटी को विदा करते समय
बाप ने भरपूर दहेज भी दिया
सास ने चहक चहक कर
पूरे बिरादरी में कहा
मैने बहु नहीं बेटी पायी है
दहेज में संस्कार लायी है
विवाह के तीन महिनो में ही
बहु का संस्कार सामने आया
उसने सास ससुर को
वृध्दाश्रम भिजवाया !
बेटी को विदा करते समय
गरीब बाप ने हाथ जोड़कर
समधी से कहा
दहेज में बेटी को
केवल संस्कार दिये है
शालीनता सौम्यता
सद्विचार ही दिये हैं
सास ने आँखे तरेरते हुए
पूरे बिरादरी में कहा
ना जाने किस जनम की
हमने सजा पायी है
बहु के माँ बाप ने इसे
संस्कार तक नहीं सिखाई है
विवाह के तीन महिनो में ही
सास का संस्कार सामने आया
दहेज के चंद रूपये हेतु
उसने बहु को आग लगाया !
बेटा भी उतना ही कुसूरवार होता है जिनती बहु ये बात सास के लिए और माँ का साथ देकर अपनी पत्नी के प्रति अन्याय करने में भी वही दोषी होता है बराबरी से.
जवाब देंहटाएंमैंने किसी को कुसूरवार ठहरा कर किसी अन्य को क्लीन चीट देने का प्रयास नहीं किया है केवल दो स्थिति का उल्लेख किया है ... और भी कई स्थितियाँ है केवल यही दो स्थिति ही नहीं ! ये मत सोचिये की पुरूष होने के नाते मैने पुरूषों को मुक्त रखने का प्रयास किया है ! पुरूष महिला को प्रताड़ित करे ये भर्त्सना योग्य है लेकिन महिला ही महिला को प्रताड़ित करे ये दुर्भाग्यजनक और अधिक पीड़ादायी है
हटाएंआदमी करे क्या जिधर जाओ उधर दुख है इस नश्वर संसार मे दहेज लो तो दिक्कत न मिले तो दिक्कत
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंदोनो रचनाएं समाज का सच है ..
आज संस्कार न जाने कहां खो गया है ..
एक पक्ष की कमजोरी का दूसरा पक्ष फायदा उठा रहा है ..
जब अंधाधुध प्रगति के नाम पर आनेवाली पीढी सबकुछ खो चुकी होगी ..
तब ही दुनिया को मालूम हो पाएगा कि संस्कार वास्तव में क्या है ??
आपकी प्रतिक्रिया मेरा पारितोष है ! कोटि कोटि धन्यवाद आपको !
हटाएंबहुर सुन्दर रचनायें।
जवाब देंहटाएंभाग्य की ऐसी विडंबना है कि सही को गलत और गलत को सही मिल जाता है...वे सौभाग्यशाली है जो सुख को भोग पाते हैं।
धन्यवाद परमजीत जी :):)
हटाएंक्या बात क्या बात , वैसे पहली वाली रचना वास्तविकता के जादा करीब है
जवाब देंहटाएंWonderful...to d point ...Sidhi baat no bakwaas...:)
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत ही अच्छी पक्तियां लिखी हैं...और बहुत हद तक लागू भी होती है आज के हालातों पर...ताली दोनों हाथों से बजती अहि इसलिए किसी भी प्रकार के हालत के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते....
सोचने पर विवश करते है आपके मुक्तक…
जवाब देंहटाएंबहू कभी ना बेटी हुई और सास कभी ना मां बन पाई॥
दोनो ने सारे रीत, चलन और रिश्तों की ही दी है दुहाई॥
जुग बीता,सदियां गुजरी; पर कोई ना समझा पीर पराई॥
जग के सारे किस्से सुनकर बस मेरी आंखें भर आई॥
अच्छे लेखन के लिए बधाई हो आपको…
आभार आपका स्वधा जी
हटाएंपारिवारिक मामलों में यह बात सामने आती है की औरत ही औरत की दुश्मन होती है....काश की हर बहू बेटी बन जाती,हर सास माँ..
जवाब देंहटाएंबेहतर द्विपक्षीय चित्रण
बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं, वैसे घर से मान बाप को बाहर निकालने की स्थिति के लिए मैं बेटे को ज्यादा जिम्मेदार मानूंगा, क्योंकि बहु तो नै सदस्य है उसको इतना अधिकार तो कोई घर का स्थापित और अर्जक सदस्य ही दे सकता है|
जवाब देंहटाएंहाँ आजकाल बाहें भी अर्जक होती हैं, पर हैं तो उस घर में नै ही, अर्थात जब तक उन्हें कोई पूर्व शापित सदस्य इसमें सहयोग न दे, ये नहीं हो सकता
आभार आपका रवींद्र जी
हटाएंbahut badiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिन्हा जी
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता .....ये सही है की सास भूल जाती है की वो भी कभी बहु थी ...अगर आज वो ये बात समझ जाये तो सास और बहु की ये कहानी ही खत्म ही हो जाएगी ........
जवाब देंहटाएंआभार आपका कैलाश जी
हटाएंबहुत सही कहा संजय जी... अक्सर मैंने देखा है.... माँ अपनी बेटी को चाहती है..उतना अपनी बहु को नहीं. इसी प्रकार बहु अपनी माँ को चाहती है, अपनी सास को नहीं. दोनों एक छोटी सी बात नहीं समझ पाती की, अपनी बेटी या माँ के साथ तो २२-२३ साल बिताया है, लेकिन अपनी पूरी जिंदगी तो एक दूसरे के साथ बितानी है .
जवाब देंहटाएंआभार आपका सोनी जी
हटाएंबेटे की शादी कर
जवाब देंहटाएंसास चहक कर बोली
बहू नहीं बेटी पाई है
लड़के ने दोस्तों पे
रौब जमाई
लाख में एक मेरी लुगाई है
परन्तु पहली ही रात
बीवी ने पति से भेद खोला
क्षमा करना
मेरे पेट में मेरे
मीत की कमाई है
तो यारों सास की
बेटी वाली बात सच हुई
अब वे ऐसे रहते
जैसे एक बहन
और उसका भाई है
(मनोज)
आज शुक्रवार
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
धन्यवाद रविकर जी :) :)
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जवाब देंहटाएंआपके हाथोँ मे तो जादु है समाज मे उपस्थित बुराइयोँ को खुरेद कर साफ करने मेँ माहिर लगतेँ हैँ।
जवाब देंहटाएंकाश आपके जैसे लोग एक हो कर इस बुराइयोँ का सामना करते ये सब चुटकी भर मेँ साफ हो जाते।
लगे रहिये एसे ही मनोरंजक सत्य पंक्तियोँ की रचना करते रहीये।