जाम के साथ गर शाम हो तो कुछ बात बने
सादा पानी भी तेरे हाथ हो तो कुछ बात बने
सादा पानी भी तेरे हाथ हो तो कुछ बात बने
रंज ही रंज हर
सिम्त ये कैसा आलम-ए-जहाँ
हो तबस्सुम
सभी लब पे तो कुछ बात बने
है अमीरी से नियामत तो यह कमाल सिक्कों
का
हो फकीरी में भी गर शाह तो कुछ बात बने
हुश्न के दम पे गिराते हैं
बर्क-ए-बर्नाई
सादगी से हो इक कयामत तो कुछ बात बने
तू कभी अँगड़ाई ले और हाथों को मेहराब
करे
“काफिर”
फिर करे सजदा तो कुछ बात बने